पुलिसकर्मियों की ज्यादा आलोचना सही नहीं
गोरखपुर(जयप्रकाश यादव)
| गोरखपुर पुलिसकर्मियों के आलोचना की जैसे मीडिया में बाढ़ आ गयी है! खास तौर से न्यूज चैनल किसी भी घटना,दुर्घटना का विश्लेषण ऐसे करेंगे जैसे अपराधी ने पुलिस से पूछ कर अपराध किया हो!तमाम अपराध ऐसे होते हैं जिसको पुलिस लाख जतन करके भी नही रोक सकती! जैसे किसी को राह चलते गोली मार कर हत्या कर देना! किसी युवती का घर से भाग जाना आदि-आदि एक बात जो अमूमन मीडिया में देखने और पढ़ने को मिलती है वह है
*अब नही रहा अपराधियों पर खाकी का खौफ*
शायद ऐसा कहने वाले भूल गये कि वह दिन हवा हुये जब मियाँ फाख़्ते उड़ाया करते थे! जब अपराधियों पर खाकी का खौफ हुआ करता था तब न तो पुलिसकर्मियों को मानवाधिकार का खौफ हुआ करता था न राजनीति का अपराधीकरण हुआ था गली कूचों में इतने नेता भी नहीं हुआ करते थे! और मीडिया कर्मी भी थाने चौकियों में कोई खास दिलचस्पी नहीं लिया करते थे! मैं तो देखता हूँ पुलिस की आलोचना करने वाले पत्रकार भी अक्सर थाने में किसी की पैरवी करते मिल जाया करते हैं! अगर पुलिसकर्मी गलत कर रहा है तो उसको नज़रअन्दाज़ करने की भी आवश्यकता नहीं है! राह चलते लोगों के साथ अगर अपराध हो रहे हैं और पुलिस निष्क्रिय है तो पुलिसकर्मी की गलती है! यह तो प्रत्येक व्यक्ति को मानना पड़ेगा कि जब से राजनीति का अपराधीकरण हुआ है! अपराधों की बाढ़ सी आ गयी है! बलिहारी लोकतंत्र की और राजनेताओं की जिनको पुलिस कल तक गिरफ्तार करने के लिये दौड़ती थी अपराधी के नेता बनने के बाद वही पुलिस उसके बँगले पर बन्दूक लिये पहरा देते मिलता है! पुलिसकर्मी का निष्क्रिय होना आकारण ही नहीं है! एक कहावत है बन्दर कितना भी बूढ़ा हो जाये गुलाटी खाना नहीं भूलता! कुछ ऐसा ही हाल अपराधी से राजनेता बने लोगों का है! कई राजनेता तो मंत्री पद भी सुशोभित कर रहे हैं! लोकतंत्र के पहरूओं के आशीर्वाद से कई लोग लोकसभा भी पहुँच गये ! मेरे ख़्याल से अभी लोग वाराणसी के डीएसपी शैलेन्द्र सिंह को नहीं भूले होंगे जो चाह कर भी अपराधी से नेता बने अपराधी का कुछ नहीं बिगाड़ पाये उल्टे डीएसपी शैलेन्द्र सिंह को इतना प्रताड़ित किया गया कि उनको नौकरी से इस्तीफा देना पड़ा! टी वी न्यूज चैनलों पर एक खबर चल रही है कि बिहार के मोकामा के निर्दलीय विधायक अनंत सिंह के यहाँ से एक ए के-47 बरामद हुई! जब ऐसे लोग राजनीति में हैं तो कैसे उम्मीद की जाये पुलिस अपना वास्तविक कार्य यानि अपराध नियंत्रण कर पायेगी! क्या यह सही नहीं है कि वर्तमान में पुलिस पर राजनीतिक दबाव काफी बढ़ गया है! वर्तमान में पुलिसकर्मियों का यह हाल है कि तमाम दबावों के चलते पुलिसकर्मी अपना कार्य कर ही नहीं पा रही है! पुलिस की आलोचना करने वालों को यह भी देखना चाहिये कि पुलिस विभाग का चाहे उच्चाधिकारी हो या सिपाही वह किन परिस्थितियों में कार्य कर रहा है! मीडियाकर्मी बन्धु क्यों नहीं पुलिसकर्मियों की समस्याओं के बारे में लिखते!ऐसा भी नहीं है कि पुलिसकर्मी लापरवाही नहीं करते! सहारनपुर में दो पत्रकारों की हत्या हो गयी! अगर पुलिस समय से पहुँच गयी होती तो पत्रकारों की जान बच गयी होती! पुलिसकर्मी समय से नहीं पहुँचते उसका भी कारण है! थानो में पुलिसकर्मियों की संख्या बहुत कम है! पुलिस के अधिकारियों को उसी संख्या बल से काम चलाना पड़ता है! यह जिम्मेदारी उ०प्र० सरकार की है! थानो में पर्याप्त पुलिस बल होना चाहिए। पुलिस विभाग जन सुरक्षा से जुड़ा एक महत्वपूर्ण विभाग है! उस विभाग के प्रति सरकार की लापरवाही समझ में न आने वाली बात है ! इसलिये पुलिस की आलोचना करने पहले पुलिसकर्मियों को आने वाली समस्याओं पर भी विचार करने की आवश्यकता है !