ग़ोरखपुर का इतिहास

History of Gorakhpur : गोरखपुर उत्तर प्रदेश राज्य के पूर्वी भाग में नेपाल के साथ सीमा के पास स्थित भारत का एक प्रसिद्ध शहर है। यह गोरखपुर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय तथा पूर्वोत्तर रेलवे (एन०ई०आर०) के मुख्यालय है और गोरखपुर प्रस्तावित राज्य पूर्वांचल की सांस्कृतिक और प्रस्तावित राजधानी भी है।

गोरखपुर एक प्रसिद्ध धार्मिक केन्द्र भी है
जो बौद्ध, हिन्दू, मुस्लिम, जैन और सिख सन्तों की साधनास्थली रहा। किन्तु मध्ययुगीन सर्वमान्य सन्त गोरखनाथ के बाद उनके ही नाम पर इसका वर्तमान नाम गोरखपुर रखा गया। यहाँ का प्रसिद्ध गोरखनाथ मन्दिर अभी भी नाथ सम्प्रदाय की पीठ है। यह महान सन्त परमहंस योगानन्द का जन्म स्थान भी है। इस शहर में और भी कई ऐतिहासिक स्थल हैं जैसे, बौद्धों के घर, इमामबाड़ा,१८वीं सदी की दरगाह और हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों का प्रमुख प्रकाशन संस्थान गीता गोरखपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन गोरखपुर शहर का रेलवे स्टेशन है। गिनेस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स के अनुसार विश्व का सर्वाधिक लम्बा प्लेटफॉर्म यहीं पर स्थित है। यह 1930 शुरू हुआ।

20वीं सदी में, गोरखपुर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक केन्द्र बिन्दु था और आज यह शहर एक प्रमुख व्यापार केन्द्र बन चुका है। पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय, जो ब्रिटिश काल में ‘बंगाल नागपुर रेलवे’ के रूप में जाना जाता था, यहीं स्थित है। अब इसे एक औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिये गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा/GIDA) की स्थापना पुराने शहर से 15 किमी दूर की गयी है।

इतिहास (History of Gorakhpur )

आधुनिक गोरखपुर, आधुनिक के अलावा, बस्ती, देवरिया, आज़मगढ़ और नेपाल के कुछ हिस्सों के जिलों के जिलों में शामिल थे। यह क्षेत्र, जिसे गोरखपुर जनपद कहा जा सकता है, आर्य संस्कृति और सभ्यता का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। History of Gorakhpur

गोरखपुर कोशल के प्रसिद्ध राज्य का एक हिस्सा था, छठवीं सदी में सोलह महाजनपदों में से एक था। अयोध्या में अपनी राजधानी के साथ इस क्षेत्र में सबसे पहले राजा शासक थे IKSVAKU, जिन्होंने क्षत्रिय के सौर वंश की स्थापना की थी। तब से, यह मौर्य, शुंग, कुशना, गुप्ता और हर्ष राजवंशों के पूर्व साम्राज्यों का एक अभिन्न अंग बना रहा। परंपरा के अनुसार, थारू राजा, मदन सिंह के मोगेन (900-950 ए.डि.) ने गोरखपुर शहर और आस-पास क्षेत्र पर शासन किया।

मध्ययुगीन काल में, जब पूरे उत्तरी भारत मुस्लिम शासक मुहम्मद गोरी के समक्ष पराजित हो गया तो गोरखपुर क्षेत्र को बाहर नहीं छोड़ा गया था। लंबी अवधि के लिए यह कुतुब-उद-दीन ऐबक से बहादुर शाह तक मुस्लिम शासकों के शासन के अधीन रहा। History of Gorakhpur

1801 में अवध के नवाब ने ईस्ट इंडिया कंपनी को इस क्षेत्र के हस्तांतरण से आधुनिक काल को चिह्नित किया था। इस के साथ, गोरखपुर को एक ‘जिलाधिकारी’ दिया गया था। पहला कलेक्टर श्री रूटलेज था। 1829 में, गोरखपुर को इसी नाम के एक डिवीजन का मुख्यालय बनाया गया था, जिसमें गोरखपुर, गाजीपुर और आज़मगढ़ के जिले शामिल थे। श्री आर.एम. बिराद को पहली बार आयुक्त नियुक्त किया गया था।

1865 में, नया जिला बस्ती गोरखपुर से बनाया गया था । 1946 में नया जिला देवरिया बना दिया गया था। गोरखपुर के तीसरे विभाजन ने 1989 में जिला महाराजगंज के निर्माण का नेतृत्व किया।

History of Gorakhpur

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व

गोरखपुर का अपना सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व है:

यह जनपद महान भगवान बुद्ध, जो बौद्ध धर्म के संस्थापक है, जिन्होंने 600 ई.पू. रोहिन नदी के तटपर अपने राजसी वेशभूषाओं को त्याग दिया और सच्चाई की खोज में निकल पड़े थे उनसे जुड़ा है ।यह जनपद भगवान महावीर, 24 वीं तीर्थंकर, जैन धर्म के संस्थापक के साथ भी जुड़ा हुआ है।गोरखनाथ के साथ गोरखपुर के सहयोग का अगला आयोजन महत्त्वपूर्ण था। उनके जन्म की तारीख और जगह अभी तक समाप्त नहीं हुई है, लेकिन शायद यह बारहवीं शताब्दी में था जो कि वह विकसित हुआ। गोरखपुर में उनकी समाधि हर साल बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती है।मध्ययुगीन काल में सबसे महत्वपूर्ण घटना, हालांकि, रहस्यवादी कवि और प्रसिद्ध संत कबीर मगहर से आने वाला था। वाराणसी में पैदा हुए, उनका कार्यस्थल मगहर था जहां उनकी सबसे खूबसूरत कविताओं का निर्माण किया गया था। यह यहां था कि उन्होंने अपने देशवासियों को शांति और धार्मिक सद्भाव में रहने के लिए संदेश दिया। ‘समाधि’ और ‘मकबरा’ के सह-अस्तित्व में मगहर में अपनी कब्र जगह पर बड़ी संख्या में अनुयायियों को आकर्षित किया जाता है।गोरखपुर को हिंदू धार्मिक पुस्तकों के विश्व प्रसिद्ध प्रकाशक गीता प्रेस के साथ भी पहचान लिया गया है। सबसे प्रसिद्ध प्रकाशन ‘कल्याण’ पत्रिका है श्री भागवत गीता के सभी 18 हिस्सों को अपनी संगमरमर की दीवारों पर लिखा गया है। अन्य दीवार के पर्दे और पेंटिंग भगवान राम और कृष्ण के जीवन की घटनाओं को प्रकट करते हैं। पूरे देश में धार्मिक और आध्यात्मिक चेतना के प्रसार के लिए गीता प्रेस अग्रिम है।4 फरवरी, 1 9 22 की ऐतिहासिक ‘चौरोई चौरो’ घटना के कारण गोरखपुर महान प्रतिष्ठा पर पहुंच गया, जो भारत की स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक मोड़-दरमिया था। पुलिस के अमानवीय बर्बर अत्याचारों पर गुस्से में, स्वयंसेवकों ने चौरी-चौरा पुलिस थाने को जला दिया, परिसर में उन्नीस पुलिसकर्मियों की हत्या। इस हिंसा के साथ, महात्मा गांधी ने 1920 में शुरू हुए असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया।एक और महत्वपूर्ण घटना 23 सितंबर, 1942 को दोहरिया में (सहजनवा तहसील में) हुई। 1942 के प्रसिद्ध भारत छोड़ो आंदोलन के जवाब में, दोहरिया में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करने के लिए एक बैठक आयोजित की गई, लेकिन बाद में असफल गोलियों से जवाब दिया, नौ मारे गए और सैकड़ों लोग घायल हुए। एक शहीद स्मारक, उनकी याद में, वहां आज भी अपनी याददाश्त को जीवित रखता है।पं जवाहर लाल नेहरू का परीक्षण 1940 में इस जिले में हुए थे। यहां उन्हें 4 साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी।गोरखपुर वायु सेना का मुख्यालय भी है जो कोबरा स्क्वाड्रन के नाम से जाना जाता है।

1865 में, गोरखपुर जिले से नया जिला बस्ती विभाजित किया गया था । वर्ष 1946 में दोबारा गोरखपुर को विभाजित कर नया जिला देवरिया बनाया गया था। 1989 में गोरखपुर के तीसरे विभाजन से जिला महाराजगंज का निर्माण किया गया । History of Gorakhpur

Important Places in Gorakhpur

Tourist Places in Gorakhpur :

गोरखनाथ मन्दिर [ Gorakhnath Madir ]

गोरखपुर रेलवे स्टेशन से 4 किलोमीटर दूरी पर नेपाल रोड पर स्थित नाथ सम्प्रदाय के संस्थापक परम सिद्ध गुरु गोरखनाथ का अत्यन्त सुन्दर भव्य मन्दिर स्थित है। यहां प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर खिचड़ी-मेला का आयोजन होता है, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु/पर्यटक सम्मिलित होते हैं। यह एक माह तक चलता है।

विष्णु मन्दिर [ Vishnu Mandir Asuran ]

यह मेडिकल कॉलेज रोड पर रेलवे स्टेशन से 3 किलोमीटर की दूरी शाहपुर मोहल्ले में स्थित है। इस मन्दिर में 12वीं शताब्दी की पालकालीन काले कसौटी पत्थर से निर्मित भगवान विष्णु की विशाल प्रतिमा स्थापित है। यहां दशहरा के अवसर पर पारम्परिक रामलीला का आयोजन होता है।

“गीताप्रेस [ GitaPress ]

रेलवे स्टेशन से 4 किलोमीटर दूरी पर रेती चौक के पास स्थित गीताप्रेस में सफ़ेद संगमरमर की दीवारों पर श्रीमद्भगवदगीता के सम्पूर्ण 18 अध्याय के श्लोक उत्कीर्ण है। गीताप्रेस की दीवारों पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम एवं भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं की ‘चित्रकला’ प्रदर्शित हैं। यहां पर हिन्दू धर्म की दुर्लभ पुस्तकें, हैण्डलूम एवं टेक्सटाइल्स वस्त्र सस्ते दर पर बेचे जाते हैं। विश्व प्रसिद्ध पत्रिका कल्याण का प्रकाशन यहीं से किया जाता है।

विनोद वन [ Vinod Park Kushmi]

रेलवे स्टेशन से 9 किलोमीटर दूर गोरखपुर-कुशीनगर मार्ग पर अत्यन्त सुन्दर एवं मनोहारी छटा से पूर्ण मनोरंजन केन्द्र (पिकनिक स्पॉट) स्थित है जहाँ बारहसिंघे व अन्य हिरण, अजगर, खरगोश तथा अन्य वन्य पशु-पक्षी विचरण करते हैं। यहीं पर प्राचीन बुढ़िया माई का स्थान भी है, जो नववर्ष, नवरात्रि तथा अन्य अवसरों पर कई श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।

गीतावाटिका

गोरखपुर-पिपराइच मार्ग पर रेलवे स्टेशन से 3 किलोमीटर दूरी पर स्थित गीतावाटिका में राधा-कृष्ण का भव्य मनमोहक मन्दिर स्थित है। इसकी स्थापना प्रख्यात समाजसेवी हनुमान प्रसाद पोद्दार ने की थी।

रामगढ़ ताल [ Ramgdh Taal ]

रेलवे स्टेशन से 5 किलोमीटर पर 1700 एकड़ के विस्तृत भू-भाग में रामगढ़ ताल स्थित है। यह पर्यटकों के लिए अत्यन्त आकर्षक केन्द्र है। यहां पर जल क्रीड़ा केन्द्र, नौकाविहार, बौद्ध संग्रहालय, तारा मण्डल, चम्पादेवी पार्क एवं अम्बेडकर उद्यान आदि दर्शनीय स्थल हैं।

इमामबाड़ा [ imaambada]

गोरखपुर नगर के मध्य में रेलवे स्टेशन से 2 किलोमीटर दूरी पर स्थित इस इमामबाड़ा का निर्माण हज़रत बाबा रोशन अलीशाह की अनुमति से सन्‌ 1717 ई० में नवाब आसफुद्दौला ने करवाया। उसी समय से यहां पर दो बहुमूल्य ताजियां एक स्वर्ण और दूसरा चांदी का रखा हुआ है। यहां से मुहर्रम का जुलूस निकलता है।

प्राचीन महादेव झारखंडी मन्दिर [ Mahadev Jharkhandi Mandir ]

गोरखपुर शहर से देवरिया मार्ग पर कूड़ाघाट बाज़ार के निकट शहर से 4 किलोमीटर पर यह प्राचीन शिव स्थल रामगढ़ ताल के पूर्वी भाग में स्थित है।

मुंशी प्रेमचन्द उद्यान [ Prem Chandra Park ]

गोरखपुर नगर के मध्य में रेलवे स्टेशन से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मनोरम उद्यान प्रख्यात साहित्यकार मुंशी प्रेमचन्द के नाम पर बना है। इसमें प्रेमचन्द्र के साहित्य से सम्बन्धित एक विशाल पुस्तकालय निर्मित है तथा यह उन दिनों का द्योतक है जब मुंशी प्रेमचन्द गोरखपुर में एक स्कूल टीचर थे।

सूर्यकुण्ड मन्दिर [ Surajkund Mandir ]

गोरखपुर नगर के एक कोने में रेलवे स्टेशन से 4 किलोमीटर दूरी पर स्थित ताल के मध्य में स्थित इस स्थान में के बारे में यह विख्यात है कि भगवान श्री राम ने यहाँ पर विश्राम किया था जो कि कालान्तर में भव्य सुर्यकुण्ड मन्दिर बना। 10 एकड में फैला है।

Gorakhpur History in Hindi

प्राचीन समय में गोरखपुर के भौगोलिक क्षेत्र मे बस्ती, देवरिया, कुशीनगर, आजमगढ़ आदि आधुनिक जिले शामिल थे। वैदिक लेखन के मुताबिक, अयोध्या के सत्तारूढ़ ज्ञात सम्राट इक्ष्वाकु, जो सौर राजवंश के संस्थापक थे जिनके वंश में उत्पन्न सूर्यवंशी राजाओं में रामायण के राम को सभी अच्छी तरह से जानते हैं। पूरे क्षेत्र में अति प्राचीन आर्य संस्कृति और सभ्यता के प्रमुख केन्द्र कोशल और मल्ल, जो सोलह महाजनपदों में दो प्रसिद्ध राज्य ईसा पूर्व छ्ठी शताब्दी में विद्यमान थे, यह उन्ही राज्यों का एक महत्वपूर्ण केन्द्र हुआ करता था। History of Gorakhpur

गोरखपुर में राप्ती और रोहिणी नदियों का संगम होता है। ईसा पूर्व छठी शताब्दी में गौतम बुद्ध ने सत्य की खोज के लिये जाने से पहले अपने राजसी वस्त्र त्याग दिये थे। बाद में उन्होने मल्ल राज्य की राजधानी कुशीनारा, जो अब कुशीनगर के रूप में जाना जाता है पर मल्ल राजा हस्तिपाल मल्ल के आँगन में अपना शरीर त्याग दिया था। कुशीनगर में आज भी इस आशय का एक स्मारक है। यह शहर भगवान बुद्ध के समकालीन 24वें जैन तीर्थंकर भगवान महावीर की यात्रा के साथ भी जुड़ा हुआ है।

भगवान महावीर जहाँ पैदा हुए थे वह स्थान गोरखपुर से बहुत दूर नहीं है। बाद में उन्होने पावापुरी में अपने मामा के महल में महानिर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया। यह पावापुरी कुशीनगर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर है। ये सभी स्थान प्राचीन भारत के मल्ल वंश की जुड़वा राजधानियों (16 महाजनपद) के हिस्से थे। इस तरह गोरखपुर में क्षत्रिय गण संघ, जो वर्तमान समय में सैंथवार के रूप में जाना जाता है, का राज्य भी कभी था।

इक्ष्वाकु राजवंश के बाद मगध पर जब नंद राजवंश द्वारा 4थी सदी में विजय प्राप्त की उसके बाद गोरखपुर मौर्य, शुंग, कुषाण, गुप्त और हर्ष साम्राज्यों का हिस्सा बन गया। भारत का महान सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य जो मौर्य वंश का संस्थापक था, उसका सम्बन्ध पिप्पलीवन के एक छोटे से प्राचीन गणराज्य से था। यह गणराज्य भी नेपाल की तराई और कसिया में रूपिनदेई के बीच उत्तर प्रदेश के इसी गोरखपुर जिले में स्थित था। 10 वीं सदी में थारू जाति के राजा मदन सिंह ने गोरखपुर शहर और आसपास के क्षेत्र पर शासन किया। राजा विकास संकृत्यायन का जन्म स्थान भी यहीं रहा है।

Gorakhpur Ke Naam Gorakhpur Kaise pada

मध्यकालीन समय में, इस शहर को मध्यकालीन हिन्दू सन्त गोरक्षनाथ के नाम पर गोरखपुर नाम दिया गया था। हालांकि गोरक्षनाथ की जन्म तिथि अभी तक स्पष्ट नहीं है, तथापि जनश्रुति यह भी है कि महाभारत काल में युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ का निमन्त्रण देने उनके छोटे भाई भीम स्वयं यहाँ आये थे। चूँकि गोरक्षनाथ जी उस समय समाधिस्थ थे अत: भीम ने यहाँ कई दिनों तक विश्राम किया था। उनकी विशालकाय लेटी हुई प्रतिमा आज भी हर साल तीर्थयात्रियों की एक बड़ी संख्या को अपनी ओर आकर्षित करती है।

12वीं सदी में, गोरखपुर क्षेत्र पर उत्तरी भारत के मुस्लिम शासक मुहम्मद गौरी ने विजय प्राप्त की थी बाद में यह क्षेत्र कुतुबुद्दीन ऐबक और बहादुरशाह, जैसे मुस्लिम शासकों के प्रभाव में कुछ शताब्दियों के लिए बना रहा। शुरुआती 16वीं सदी के प्रारम्भ में भारत के एक रहस्यवादी कवि और प्रसिद्ध सन्त कबीर भी यहीं रहते थे और मगहर नाम का एक गाँव (वर्तमान संतकबीरनगर जिले में स्थित), जहाँ उनके दफन करने की जगह अभी भी कई तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती है, गोरखपुर से लगभग 20 किमी दूर स्थित है।

16 वीं शताब्दी में मुगल बादशाह अकबर ने साम्राज्य के पुनर्गठन पर, जो पाँच सरकार स्थापित की थीं सरकार नाम की उन प्रशासनिक इकाइयों में अवध प्रान्त के अन्तर्गत गोरखपुर का नाम मिलता है।

इमामबाड़ा के नाम से मशहूर 18वीं सदी की एक दरगाह यहाँ के रेलवे स्टेशन से केवल 2 किमी दूर स्थित है। इसके अतिरिक्त इमामबाड़ा के रोशन अली शाह नामक एक सूफी सन्त की दरगाह भी इस शहर में है। यहाँ भी एक धूनी निरन्तर जलती रहती है। यह शहर सोने और चाँदी के ताजियों के लिये भी प्रसिद्ध है। History of Gorakhpur

गोरखपुर 1803 में सीधे ब्रिटिश नियन्त्रण में आया. यह 1857 के विद्रोह भारतीय विद्रोह के प्रमुख केंद्रों में रहा और बाद में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में इसने एक प्रमुख भूमिका निभायी।

Chauri Chaura

गोरखपुर जिला चौरीचौरा की 4 फ़रवरी, 1922 की घटना जो भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुई, के बाद चर्चा में आया जब पुलिस अत्याचार से गुस्साये 2000 लोगों की एक भीड़ ने चौरीचौरा का थाना ही फूँक दिया जिसमें उन्नीस पुलिसकर्मियों की मृत्यु हो गयी। आम जनता की इस हिंसा से घबराकर महात्मा गांधी ने अपना असहयोग आंदोलन यकायक स्थगित कर दिया।

जिसका परिणाम यह हुआ कि उत्तर प्रदेश में ही हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नाम का एक देशव्यापी प्रमुख क्रान्तिकारी दल गठित हुआ जिसने 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड करके ब्रिटिश सरकार को खुली चुनौती दी जिसके परिणामस्वरूप दल के प्रमुख सरगना राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ को गोरखपुर जेल में ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई में सक्रिय भाग लेने के लिये फाँसी दे दी गयी। 19 दिसम्बर 1927 को बिस्मिल की अन्त्येष्टि जहाँ पर की गयी वह राजघाट नाम का स्थान गोरखपुर में ही राप्ती नदी के तट पर स्थित है। History of Gorakhpur

सन 1934 में यहाँ एक भूकम्प आया था जिसकी तीव्रता 8.1 रिक्टर पैमाने पर मापी गयी, उससे शहर में बहुत ज्यादा नुकसान हुआ था।

जिले में घटी दो अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं ने 1942 में शहर को और अधिक चर्चित बनाया। प्रसिद्ध भारत छोड़ो आंदोलन के बाद शीघ्र ही 9 अगस्त, को जवाहर लाल नेहरू को गिरफ्तार किया गया था और इस जिले में उन पर मुकदमा चलाया गया। उन्होंने यहाँ की जेल में अगले तीन साल बिताये। सहजनवा तहसील के पाली ब्लॉक अन्तर्गत डोहरिया गाँव में 23 अगस्त को आयोजित एक विरोध सभा पर ब्रिटिश सरकार के सुरक्षा बलों ने गोलियाँ चलायीं जिसके परिणामस्वरूप अकारण नौ लोग मारे गये और सैकड़ों घायल हो गये। एक शहीद स्मारक आज भी उस स्थान पर खड़ा है। History of Gorakhpur

Birth Place of Rahul Sanskritayan

यह महापण्डित राहुल सांस्कृत्यायन का जन्म स्थान तो है ही इसके अतिरिक्त यह पूर्वोत्तर रेलवे (एन०ई०आर०) के मुख्यालय के लिये भी जाना जाता है। क्रान्तिकारी शचीन्द्र नाथ सान्याल, जिन्हें दो बार आजीवन कारावास की सजा मिली, ने भी अपने जीवन के अन्तिम क्षण इसी शहर में बिताये। शचिन दा ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के संस्थापकों में थे बाद में जब उन्हें टी०बी० (क्षय रोग) ने त्रस्त किया तो वे स्वास्थ्य लाभ के लिये भुवाली चले गये वहीं उनकी मृत्यु हुई। उनका घर आज भी बेतियाहाता में है जहाँ एक बहुत बड़ी बहुमंजिला आवासीय इमारत सहारा के स्वामित्व पर खडी कर दी गयी है। इसी घर में कभी अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करने वाले उनके छोटे भाई स्वर्गीय जितेन्द्र नाथ सान्याल भी रहे। इन्हीं जितेन दा ने लाहौर षडयन्त्र के मामले में सजायाफ्ता सरदार भगत सिंह पर एक किताब थी लिखी थी जिसे अंग्रेजों ने जब्त कर लिया।History of Gorakhpur

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इस शहर के इतिहास का सबसे दिलचस्प अध्याय यहाँ स्थित भारतीय वायु सेना का हवाई आधार (एरोबेस) है जो 1974 में छह अनुयायियों के साथ एक पाकिस्तानी जासूस द्वारा नष्ट कर दिया था। वह पाकिस्तानी जासूस अबू शुजा (अबू वकार जिसका असली नाम अबू सलीम) है अबू वकार के रूप में जाना जाता है। उसने भारत से वापस लौटने के बाद एक गाजी नामक पुस्तक लिखी जिसमें उसने यह दावा किया कि उस हमले में 200 से अधिक भारतीय वायुसैनिक मारे गये थे।

उर्दू कवि फिराक गोरखपुरी, हॉकी खिलाड़ी प्रेम माया तथा दिवाकर राम, राम आसरे पहलवान और हास्य अभिनेता असित सेन गोरखपुर से जुड़े प्रमुख व्यक्तियों में हैं। प्रसिद्ध हिन्दी लेखक मुंशी प्रेमचन्द की कर्मस्थली भी यह शहर रहा है। History of Gorakhpur

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