बुंदेलखंड अलग राज्य की मांग केवल नेताओं का स्वार्थ

चुनाव खत्म होते ही नेताओं ने फिर अलापना शुरू किया अलग बुंदेलखंड का राग
बुंदेलखंड की मांग तो वैसे आजादी के पहले से हो रही है किंतु बुंदेलखंड के अपने ही नेताओं के स्वार्थ की भेंट चढ़ता चला आ रहा है बुन्देलखण्ड राज्य। बुन्देलखण्ड के नेताओं का स्वाभाविक गुण रहा है वे बुन्देलखण्ड अलग राज्य के मुद्दे से प्रसिद्धी पाकर सत्ताधारी पार्टी या अन्य किसी बड़े लाभ के पद तक पहुंचकर मुद्दे से दूर हो जाते हैं। आजादी के बाद उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड, मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़, बिहार से झारखंड और आंध्रप्रदेश से तेलंगाना के आंदोलन इतने पुराने नही थे जबकि बुंदेलखंड अलग राज्य का मुद्दा इन सबसे पुराना है।

बुन्देलखण्ड अलग राज्य के आंदोलन कारियों को किसान बिल का विरोध कर रहे किसानों से सीखना चाहिए किसान बिल के विरोध में दिल्ली में जमे किसानों ने गांधीवादी तरीके से आंदोलन को सफल बनाया। कुछ अराजक तत्वों को छोड़कर प्रमुख किसान नेताओं ने शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन को अनवरत जारी रखा और अंत मे प्रधानमंत्री जी को किसानों के तीनों बिल वापस लेने पड़े। क्या प्रधानमंत्री जी को इतना मजबूर कर पाएं हमारे बुंदेलखंडी और उनके नेता?
हाँ एक बात और कि आजतक किसी भी बुंदेली संगठनों और अलग राज्य की मांग कर रहे नेताओं ने बुंदेलखंड के जल, जंगल, जमीन की लड़ाई नही लड़ी और न ही कभी इन्होंने उनके अधिकारों की बात की और तो और आम आदमी की समस्या से इन संगठनों और नेताओं का कोई लेना देना नही होता ये सिर्फ जहाँ अपना स्वार्थ देखते है वही नजर आते हैं। इन सभी बुंदेली संगठनों और नेताओं को फोटो खिंचाने और पेपर में खबर छपवाने की बड़ी नशीली आदत हैं। आप बुन्देलखण्ड के मुद्दों की बात करें तो बहुत हैं जैसे अन्ना प्रथा, अवैध खनन, खनिज संपदा का दोहन, पर्यटन विभाग और पुरातात्विक विभागों की शून्यता, बेरोजगारी, साक्षरता दर, आर्थिक समानता, उपजाऊ भूमि की कमी और भाषा का अप्रसार आदि। सवाल फिर वही आखिर इन बुंदेलियों का सगा कौन है?
हम मध्यप्रदेश के बुन्देलखण्ड की तुलना में उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड को ज्यादा पिछड़ा और अविकसित पाएंगे। मुझे नही लगता कि ये कभी अलग राज्य बन पाएगा। यहां के जंगलों में निवास कर रहे आदिवासियों को भी इन नेताओं से भय लगता है वे कभी मुगलों तो कभी अंग्रेजो से लड़ाई तो लड़े किंतु आज इन सरकारों से अधिकारों की लड़ाई छोड़ो अलग राज्य की लड़ाई कैसे लड़ें। क्या आंदोलन दिशा हीन है?
आंदोलन कर रहे तमाम संगठनों और नेताओं की भूमिका पर एक सवाल है कि वह या तो सिर्फ अपने को लाइम लाइट करते रहना चाहते है या उन्होंने आजतक आंदोलन का कोई मॉड्यूल नही तैयार किया। दिशा हीन तो है ही साथ उसका अपना कोई अभियान या गतिविधि या प्रारूप तय नही हुआ। बिना एजेंडा के या बिना किसी संकल्प साधना के बुंदेलखंड अलग राज्य सिर्फ एक स्वप्न मात्र ही बनकर रह जायेगा। क्या हमारे बुंदेली ऊर्जावान नही हैं?
एक क्रांति झांसी से शुरू हुई थी उससे पहले एक क्रांति महोबा से शुरू हुई थी।
आज कौन बुंदेली है जो क्रांति की अलख जलाएगा?
उदघोष वही है पहले राष्ट्र फिर राज्य – भारत अखंड, जय बुंदेलखंड