ध्रुव व प्रहलाद की कथा सुनकर श्रद्धालु हुए आनन्दित।

शशि भूषण दुबे
उसका बाजार सिद्धार्थ नगर (संज्ञान न्यूज़)
कस्बा के अम्बेडकर नगर वार्ड में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन सोमवार की रात्रि में कथा व्यास आचार्य संतोष जी महाराज ने ध्रुव व भक्त प्रहलाद की कथा सुनाई । कथा सुनकर श्रद्धालु आनंदित हुए।
कथा व्यास ने ध्रुव की कथा सुनाते हुए कहा कि स्वायंभुव मनु की पत्नी का नाम शतरूपा था। इन्हें प्रियव्रत, उत्तानपाद आदि 7 पुत्र और देवहूति, आकूति तथा प्रसूति नामक 3 कन्याएं हुई थीं। शतरूपा के पुत्र उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो पत्नियां थीं। राजा उत्तानपाद के सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र उत्पन्न हुए।
उत्तानपाद की सुनीति पहली पत्नी थी जिसका पुत्र ध्रुव था। सुनीति बड़ी रानी थी लेकिन राजा सुनीति के बजाय सुरुचि और उसके पुत्र को ज्यादा प्रेम करता था। एक बार राजा अपने पुत्र ध्रुव को गोद में लेकर बैठे थे तभी वहां सुरुचि आ गई। अपनी सौत के पुत्र ध्रुव को गोद में बैठा देखकर उसके मन में जलन होने लगी। तब उसने ध्रुव को गोद में से उतारकर अपने पुत्र को गोद में बैठाते हुए कहा, राजा की गोद में वही बालक बैठ सकता है और राजसिंहासन का भी अधिकारी हो सकता है जो मेरे गर्भ से जन्मा हो। तू मेरे गर्भ से नहीं जन्मा है। यदि तेरी इच्छा राज सिंहासन प्राप्त करने की है तो भगवान नारायण का भजन कर। उनकी कृपा से जब तू मेरे गर्भ से उत्पन्न होगा तभी सिंहासन प्राप्त कर पाएगा।
पांच साल का अबोध बालक ध्रुव सहमकर रोते हुए अपनी मां सुनीति के पास गया और उसने अपनी मां से उसके साथ हुए व्यवहार के बारे में कहा। मां ने कहा, बेटा ध्रुव तेरी सौतेली माँ है , उनसे तेरे पिता अधिक प्रेम करते हैं। इसी कारण वे हम दोनों से दूर हो गए हैं। नारायण के अतिरिक्त अब हमारे दुख को दूर करने वाला कोई दूसरा नहीं बचा। यह सुनकर बालक ध्रुव घोर तपस्या करने निकल पड़े । पांच वर्ष के बालक ध्रुव कठोर तपस्या से नारायण को प्रश्न करके ब्रह्मांड में अचल व अनुपम स्थान प्राप्त किया। इसके बाद कथा व्यास ने भक्त प्रहलाद की कथा सुनाई। कथा नरसिंह भगवान की झांकी सभी का मन मोह लिया।
कथा में वेदव्यास मिश्र, हरिवंश शुक्ल, विवेकानन्द पाण्डेय, गीता देवी , शशिकला आदि श्रद्धालु रहे।